नमस्कार!
केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्री अमित शाह, अलग–अलग राज्यों के मुख्यमंत्रिगण, गृह मंत्री जी, राज्यों के पुलिस महानिदेशक, गृह मंत्रालय के वरिष्ठ पदाधिकारीगण, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों ! आजकल देश में उत्सव का माहौल है। ओणम, ईद, दशहरा, दुर्गा पूजा, दीपावली सहित अनेक उत्सव शांति और सौहार्द के साथ देशवासियों ने मनाए हैं। अभी छठ पूजा समेत कई अन्य त्यौहार भी हैं। विभिन्न चुनौतियों के बीच, इन त्यौहारों में देश की एकता का सशक्त होना, आपकी तैयारियों का भी प्रतिबिंब हैं। संविधान में भले कानून और व्यवस्था राज्यों का दायित्व है, लेकिन ये देश की एकता–अखंडता के साथ भी उतने ही जुड़े हुए हैं। सूरजकुंड में हो रहा गृह मंत्रियों का ये चिंतन शिविर, कॉपरेटिव फेडरेलिज्म का भी एक उत्तम उदाहरण है। हर एक राज्य एक दूसरे से सीखे, एक दूसरे से प्रेरणा लें, देश की बेहतरी के लिए मिल–जुलकर के काम करे, ये संविधान की भी भावना है और देशवासियों के प्रति हमारा दायित्व भी है।
साथियों,
आज़ादी का अमृतकाल हमारे सामने है। आने वाले 25 साल देश में एक अमृत पीढ़ी के निर्माण के हैं। ये अमृत पीढ़ी, पंच प्रणों के संकल्पों को धारण करके निर्मित होगी। विकसित भारत का निर्माण, गुलामी की हर सोच से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता और सबसे प्रमुख बात नागरिक कर्तव्य, इन पंच प्रणों का महत्व आप सभी भली–भांति जानते हैं, समझते हैं। ये एक विराट संकल्प है, जिसको सिर्फ और सिर्फ सबका प्रयास से ही सिद्ध किया जा सकता है। तरीके अपने–अपने हो सकते हैं, रास्ते, priority अलग–अलग हो सकती हैं, लेकिन ये पंच प्रण देश के हर राज्य में हमारी गवर्नेंस की प्रेरणा होने चाहिए। जब ये सुशासन के मूल में होंगे, तो भारत के सामर्थ्य का विराट विस्तार होगा। जब देश का सामर्थ्य बढ़ेगा तो देश के हर नागरिक, हर परिवार का सामर्थ्य बढ़ेगा। यही तो सुशासन है, जिसका लाभ देश के हर राज्य को समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचाना है। इसमें आप सभी की बहुत बड़ी भूमिका है।
साथियों,
यहां आप में से अधिकतर या तो राज्य को नेतृत्व दे रहे हैं, या फिर सीधे–सीधे कानून–व्यवस्था की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। कानून व्यवस्था का सीधा संबंध, राज्य के विकास से है। इसलिए राज्यों में विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में आप सभी के निर्णय और नीतियां और आपकी रीति ये बहुत अहम हैं।
साथियों,
कानून–व्यवस्था के पूरे तंत्र का विश्वसनीय होना, जनता के बीच उनका Perception क्या है, ये भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आपने देखा है कि जब भी कोई natural calamity होती है, प्राकृतिक आपदा हाती है, तो इन दिनों NDRF की, SDRF की एक पहचान बनी हुई है। उनको यूनिफार्म, वो संकट के समय पहले पहुंच जाना और उसके कारण देशवासियों के मन में इनके प्रति एक विश्वास बना है कि भाई, ये आए हैं चलिए संभल जाएगा, ये जो कह रहे हैं मानना चाहिए। इनकी बातें अगर स्वीकार करेंगे तो हमारा नुकसान कम होगा। और आप देखिए NDRF में है कौन भाई? SDRF में है कौन? आप ही के सब साथी हैं। सुरक्षाबल के जवान ही हैं। लेकिन समाज में उनके प्रति बड़ी श्रद्धा बन गई है। आपदा के समय में जैसे ही NDRF-SDRF की टीम पहुंचती है, वैसे ही लोगों को संतोष होने लगता है कि अब एक्सपर्ट टीम पहुंच गई है, अब ये अपना काम कर लेंगे।
साथियों,
अपराध वाली किसी भी जगह पर जैसे ही पुलिस पहुंचती है, लोगों में ये भाव आता है कि सरकार पहुंच गई। कोरोना काल में भी हमने देखा है कि किस तरह पुलिस की साख बेहतर हुई थी। पुलिस के लोग जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे, जरूरी संसाधान जुटा रहे थे, अपनी ही जिंदगी को दांव पर लगा रह थे। यानि कर्तव्य परायणता में कोई कमी नहीं है, जरूरत अच्छा Perception बनाए रखने की भी है, इसके लिए पुलिस बल को प्रेरित करना, उसके लिए प्लान करना, हर छोटी–मोटी चीजों पर लगातार मार्गदर्शन करते रहना, कुछ गलत होता है तो रोकना, ये हमारी एक जीवंत प्रक्रिया होनी चाहिए, ऊपर से नीचे तक हर पल होनी चाहिए।
साथियों,
हमें एक बात और समझनी होगी। अब कानून व्यवस्था किसी एक राज्य के दायरे में सिमटी रहने वाली व्यवस्था नहीं रह गई है। अब अपराध Inter-state और Inter-national हो रहे हैं। यानि टेक्नोलॉजी की मदद से एक राज्य में बैठे अपराधी, दूसरे राज्य में भयंकर अपराध करने की ताकत रखते हैं। देश की सीमा से बाहर बैठे अपराधी भी टेक्नोलॉजी का जमकर गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए हर राज्य की एजेंसियों का आपस में तालमेल, केंद्र और राज्य की एजेंसियों का आपस में तालमेल ये बहुत जरूरी है। और इसीलिए आपको मालूम होगा मैंने डीजीपी कांफ्रेंस में कहा था कि दो adjoining state होते हैं उसके जो adjourning district होते हैं उन्होंने periodically बैठकर के दोनों राज्यों की दोनों जिलों की समस्याओं का संकलन करना चाहिए, साथ मिलकर काम करना चाहिए। उसी में से ताकत बनेगी। कई बार केंद्रीय एजेंसियों को कई राज्यों में एक साथ जांच करनी पड़ती है। दूसरे देशों में भी जाना पड़ता है। इसलिए हर राज्य का दायित्व है कि चाहे राज्य की एजेंसी हो, चाहे केंद्र की एजेंसी हो या संबंधित कहीं किसी और राज्य से संपर्क आता है। सभी एजेंसियों को एक दूसरे को पूरा सहयोग देना चाहिए। कोई बड़ा है, कोई छोटा है, किसका अधिकार है उसी में कभी–कभी तो हम देखते हैं एक आधी एफआईआर रजिस्टर नहीं हुई, क्यों नहीं हुई तो बोले ये तय नहीं हो रहा है कि वो जो जगह है वो इस थाने में पड़ती है कि उस थाने में पड़ती है। ये जो चीजें हैं वो सिर्फ पुलिस–थाने तक नहीं हैं। राज्यों के बीच भी हो जाती हैं। केंद्र और राज्यों के बीच में हो जाती हैं। भारत और विदेश की व्यवस्थाओं के साथ हो जाती हैं। इसलिए हमारी efficiency के लिए, हमारे outcome के लिए सामान्य नागरिक को सुरक्षा देने के लिए हमारे बीच में तालमेल, संकलन, सहयोग बहुत अनिवार्य है। और इसके लिए जितना संकलन बढ़ेगा, आपके राज्य की भी ताकत बढ़ने वाली है।
साथियों,
साइबर क्राइम हो या फिर ड्रोन टेक्नॉलॉजी का हथियारों और ड्रग्स तस्करी में उपयोग, इनके लिए हमें नई टेक्नॉलॉजी पर काम करते रहना होगा। अब देखिए हम 5G के युग में घुस गए हैं, तेजी से 5G पहुंचने वाला है। अब 5G के जितने लाभ हैं, इतनी ही जागरुकता भी जरूरी रहेगी। 5G से facial recognition technology, automatic number-plate recognition technology, drones और CCTV जैसी टेक्नॉलॉजी की परफॉर्मेंस में कई गुणा सुधार होने वाला है। लेकिन हम जितनी तेजी से आगे बढ़ेंगे, जो क्राइम करने वाला वर्ल्ड है, उसका भी ग्लोबलाइजेशन हो चुका है। वो भी interested हो चुका है। वो भी टेक्नोलॉजी में forward हो चुके हैं। मतलब हमें उनसे दस कदम आगे जाना होगा। हमें हमारी कानून व्यवस्था को भी स्मार्ट बनाना इसके लिए बहुत ही आग्रह से काम करना पड़ेगा।
साथियों,
मेरा आग्रह ये भी है कि टेक्नोलॉजी को कृपा करके बजट के तराजू से ना तौलें। और मेरा सभी आदरणीय मुख्यमंत्रियों से, सभी आदरणीय गृहमंत्रियों से इस विषय में एक टीम बनाकर के दुनिया में criminal world की किस टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ रहा है, उपलब्ध टेक्नोलॉजी हमारे लोगों को कैसे सुरक्षा दे सकती है, इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए और इसमें जो बजट जाएगा वो बाकी सैकड़ों खर्चों को बचाने का कारण बन जाएगा। और इसलिए टेक्नोलॉजी का बेहतर इस्तेमाल पूरे पुलिस तंत्र को तो मजबूत करता ही करता है, सामान्य मानवी को सुरक्षा देना का एक विश्वास नीचे तक हम पहुंचा सकते हैं। टेक्नोलॉजी, Crime Prevention में भी मदद करती है और Crime detection में भी, Crime Investigation में भी बहुत काम आती है। आज देखिए, कितने ही अपराधी, CCTV की वजह से पकड़े जा रहे हैं। स्मार्ट सिटी अभियान के तहत शहरों में बनाए गए आधुनिक कमांड और कंट्रोल सिस्टम से भी बहुत मदद मिल रही है।
साथियों,
इस प्रकार की नई टेक्नॉलॉजी के विकास के लिए केंद्र सरकार ने पुलिस टेक्नॉलॉजी मिशन भी शुरु किया है। अनेक राज्य भी इसमें अपने स्तर पर काम कर रहे हैं। लेकिन ये अनुभव आ रहा है कि हमारे अलग–अलग प्रयोग होने के कारण हमारी टेक्नोलॉजी एक दूसरे के साथ बात नहीं करती है, और इसलिए हमारी एनर्जी waste होती है। वो जो भी मेटरियल है, वो उस राज्य तक सीमित रहता है। हमें कॉमन प्लेटफार्म के विषय में बड़ा मन रखकर के सोचना ही पड़ेगा। किसी एक के पास बहुत उत्तम चीज है तो ये मानकर के न बैठें कि मेरे पास है, मैं तो किसी को दूंगा नहीं, मैं अपनी ताकत बनाए रखूँगा, एक समय आएगा कि इतनी उत्तम टेक्नोलॉजी होगी और लोगों के सहयोग में नहीं होगी तो stand alone निकम्मी हो जाएगी। और इसलिए टेक्नोलॉजी में भारत के संदर्भ में सोचना हमारी सभी best practices, best innovation कॉमन लिंक वाले ही होने चाहिए, Inter operable होने चाहिए, एक दूसरे के साथ लगातार सरलता से बात कर सके ये व्यवस्थाएं अनिवार्य है।
साथियों,
आज फॉरेंसिक साइंस का महात्मय बढ़ रहा है, और वो सिर्फ पुलिस महकमे तक सीमित नहीं है जी! Legal fraternity को फॉरेंसिक साइंस को समझना पड़ेगा, Judiciary को फॉरेंसिक साइंस समझना पड़ेगा, Even हॉस्पिटल को भी फॉरेंसिक साइंस समझना पड़ेगा। इन सबके प्रयत्न से ही फॉरेंसिक साइंस का उपयोग क्राइम और क्रिमिनल को सजा दिलाने में बहुत काम आ सकता है। अकेले पुलिस के पास फॉरेंसिक साइंस की कुछ व्यवस्था हैं, ये enough नहीं होगा। और इसलिए हर राज्य में हमें संकलित और संतुलित व्यवस्था हर राज्य को गांधीनगर स्थित नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की और उसकी क्षमता आज दुनिया के 60-70 देश फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी का लाभ ले रहे हैं। हमारे राज्यों को भी बढ़–चढ़कर लाभ लेना चाहिए। ये पूरी तरह futuristic technology driven व्यवस्था है। Human Resource Development का भी वहां काम है, नए–नए टेक्नोलॉजी टूल बनाने का भी काम है। और बड़े कठिन केसेस को सुलझाने में भी वो लैब काम आ रही है। मैं समझता हूं कि इस व्यवस्था का उपयोग सभी राज्य सक्रियता से कैसे करें?
साथियों,
कानून व्यवस्था को बनाए रखना, एक 24×7 वाला काम है। लेकिन किसी भी काम में ये भी आवश्यक है कि हम निरंतर प्रकियाओं में सुधार करते चलें, उन्हें आधुनिक बनाते चलें। बीते वर्षों में भारत सरकार के स्तर पर कानून व्यवस्था से जुड़े जो Reforms हुए हैं, उन्होंने पूरे देश में शांति का वातावरण बनाने में मदद की है। आप भी जानते हैं कि भारत की विविधता, भारत की विशालता की वजह से हमारे law enforcement system पर कितना दबाव होता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि हमारा ये सिस्टम सही दिशा में ऊर्जा लगाए। वर्ना हमने देखा है कि कितने ही अनावश्यक केसों में, छोटी–छोटी गलतियों की जांच में ही पुलिस डिपार्टमेंट की ऊर्जा चली जाती है। इसलिए हमने व्यापार–कारोबार से जुड़े अनेकों प्रावधानों को अब decriminalize कर दिया है, उन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर निकाल दिया है। डेढ़ हजार से ज्यादा पुराने कानूनों को समाप्त करके भविष्य का बहुत बड़ा बोझ कम किया गया है। मैं तो राज्यों से भी आग्रह करता हूं आप भी अपने यहां कानूनों को evaluate कीजिए। आजादी के पहले के जितने कानून हैं, उनको वर्तमान तरीकों के साथ बदलिए। हर कानून में क्रिमिनल एंगल और निर्दोष नागरिकों को परेशानी वो वक्त चला गया है जी।
साथियों,
सरकार को अब जैसे स्वामित्व योजना, ये स्वामित्व योजना के तहत देश के गांवों में ड्रोन टेक्नोलॉजी के माध्यम से प्रॉपर्टी कार्ड वितरित कर रहे हैं, वो भी जमीन से जुड़े विवादों को कम करेंगे, झगड़े खत्म होंगे गांव के। वरना गांव की समस्या ज्यादातर एक फुट जमीन जिसने ले ली उसी में से बड़े–बड़े झगड़े हो जाते थे।
साथियों,
परोक्ष और अपरोक्ष रूप से किए गए ऐसे अनेक प्रयासों से law enforcement एजेंसियों को भी अपनी प्राथमिकता तय करने में बहुत मदद मिली है। लेकिन हम जब पूरे कैनवास पर चीजों को रखकर के अपनी स्ट्रेटजी में बदलाव नहीं करेंगे, 20-30-50 साल पुरानी पद्धतियों से चलेंगे तो शायद इन चीजों का फायदा नहीं मिलेगा। बीते वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों ने भी कानून–व्यवस्था को मजबूत किया है। आतंकवाद हो, हवाला नेटवर्क हो, भ्रष्टाचार हो, इस पर आज देश में अभूतपूर्व सख्ती दिखाई जा रही है। लोगों में विश्वास पनपने लगा है। UAPA जैसे कानूनों ने आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई में व्यवस्थाओं को ताकत दी है। यानि एक तरफ हम देश के law enforcement system का, उसकी क्षमता बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ उन पर अनावश्यक बोझ को भी हटा सकें।
साथियों,
एक और विषय हमारे देश की पुलिस के लिए महत्वपूर्ण है। जैसे आज देश में One Nation, One Ration Card की व्यवस्था बनी है, One Nation-One Mobility Card की व्यवस्था हो रही है, One Nation-One Grid बना है, One Nation-One Sign Language बनी है, वैसे ही पुलिस की वर्दी को भी लेकर भी ऐसी ही कोई अप्रोच अपनाई जा सकती है। क्या हमारे राज्य मिल बैठकर के, इससे बहुत लाभ होंगे, एक तो Quality material product होगा, क्योंकि mass scale पर होगा। कैप होगी तो करोड़ों कैपेज की जरूरत पड़ेगी। बेल्ट चाहिए तो करोड़ों में चाहिएगा। और देश को कोई भी नागरिक कहीं पर भी जाएगा देखते ही उसको पता चलेगा हां ये पुलिस वाला है। अब जैसे पोस्ट ऑफिस का डिब्बा। हिन्दुस्तान में कोई पढ़ा–लिखा, अनपढ़ आदमी को मालूम है ये पोस्ट का डिब्बा है। यानि कागज डाला वहां पहुंचता है। एक पहचान होती है। हमारे लिए भी आवश्यक है कि हमारे देश के पुलिस बेड़े में, हम सोंचे, साथ मिलकर के सोंचे, कोई किसी पर थोपने की जरूरत नहीं है, एक evolve करें। आप देखिए बहुत बड़ा लाभ होगा और एक दूसरे की ताकत में इजाफा होगा। One Nation- One Police Uniform, हां उस राज्य का एक टैग हो सकता है, उस राज्य का एक नंबर हो सकता है, लेकिन पहचान कॉमन बने, इस पर सोचें, मैं एक विचार के रूप में रख रहा हूं। ना मैं कोई आपसे आग्रह भी करता हूं। मैं सिर्फ एक विचार रखता हूं। और इस विचार पर चर्चा कीजिए। कभी ठीक लगे 5 साल 50 साल 100 साल के बाद भी उपयोगी लगेगा, तो जरूर देखिए। उसी प्रकार से अलग–अलग प्रकार की पुलिस के नए–नए विभाग शुरू हुए हैं। Expertise आई है।
अब हम देखिए दुनिया में दूरिज्म का बहुत बड़ा मार्केट है। भारत में टूरिज्म की संभावनाएं बहुत बढ़ रही हैं। विश्व से बहुत बड़ी मात्रा में टूरिस्टों का भारत में आने का प्रवाह बढ़ना ही बढ़ना है। आज दुनिया में कई देश जो टूरिज्म के क्षेत्र में बहुत आगे हैं। वहां टूरिज्म के लिए काम करने वाली पुलिस बनाई जाती है। उनकी ट्रेनिंग अलग होती है। उनको languages भी सिखाई जाती है। उनके behaviour पूरी तरह चेंज होता है। और यात्रियों को भी विदेश के टूरिस्टों को भी पता होता है कि भाई ये मदद करने के लिए पुलिस की व्यवस्था है और वो पुलिस होने के कारण वो Police Enforcement जो Institutes है उससे भी बड़ी आसानी से संकलन कर पाता है। कभी न कभी हमे हमारे देश में इस सुविधा की expertise को डेवलप करना ही पड़ेगा। ताकि भारत में टूरिज्म के लिए विश्वभर से आने वाले आदमी और एक पूंजी निवेश के लिए आने वाले में बहुत फर्क है। टूरिस्ट तुरंत आपका एंबेसडर बन जाता है। अच्छी चीज भी वही दुनिया में ले जाएगा, बुरी चीज भी वही दुनिया में ले जाएगा। पूंजी निवेश जो करता है उसको इस काम में काफी समय लग जाता है अगर गलत हो गया तो। लेकिन टूरिस्ट तो दो दिन में ही खबर पहुंचा देता है अरे यार भाई यहां तो ये हाल है। और इसलिए आज भारत में भी मिडिल क्लास का बल्क इतना बढ़ रहा है टूरिज्म को लेकर के बहुत बदलाव आ रहा है। अब टूरिज्म और ट्रैफिक नई समस्या आ रही है। अब हम एडवांस में नहीं सोचेंगे, alternate नहीं सोचेंगे तो वहीं टूरिज्म के हमारे सेंटर्स तो कोई बदलने वाले नहीं है। हम कहें कि भाई आप शिमला नहीं वहाँ जाइये तो ये तो होने से शिमला जिसको जाना है शिमला ही जाएगा। नैनीताल जाना है वो नैनीताल ही जाएगा, श्रीनगर जाना है वो श्रीनगर ही जाएगा, गुलमर्ग जाना है वो गुलमर्ग ही जाएगा। हमें व्यवस्थाओं को विकसित करना होगा।
साथियों,
हमने देखा है, कोरोना के समय में जब पुलिस के लोग अपने क्षेत्रों के लोगों को फोन करके पूछते थे और खासकर के मैंने देखा है कुछ शहरों में senior citizen के लिए पुलिस में जो बड़ी आयु के लोग हैं, जिनसे अब ज्यादा मजदूरी करवाना उनके साथ भी अत्याचार है। उन्होंने स्वेच्छा से ऐसे काम लिए हैं। और वे Senior Citizens को लगातार पूछते हैं ठीक हो ना, कहीं बाहर तो जाने वाले नहीं हो ना, घर बंद करके जाने वाले नहीं हो ना, इसके कारण नागरिकों का जो confidence बढ़ता है। वो एक प्रकार से आपकी ताकत बन जाता है। इस चीज को हम जितना ज्यादा उपयोग कर सकते हैं, professional way में कर सकते हैं और पूरी तरह जीवंतता हो, संवेदनशीलता हो, आप देखिए समाज जीवन में ये फोन आपका सप्ताह में अगर किसी सीनियर सिटिजन को जाता है वो महीने भर दुनिया को कहता रहता है कि भई पुलिस थाने से बिलकुल फोन आ जाता है, हर बुधवार को पूछ लेते हैं मेरी कोई दिक्कत है नहीं, इन चीजों बहुत बड़ी ताकत होती है। जो perception की लड़ाई है ना, ये आपके सारे perception बनाने वाले लोग हैं। हमें एक और काम की तरफ बहुत सजग होने की जरूरत है जी, Technological Intelligence इसकी अपनी ही एक ताकत है, उसका उपयोग है लेकिन हम Human Intelligence को नकार नहीं सकते हैं। उस विधा को पुलिस डिपार्टमेंट ने आज से सौ साल, कितनी ही टेक्नोलॉजी बदल जाए, 100 साल के बाद उसकी जरूरत पड़ने वाली है। उस institute को जितना ताकतवर बना सकते हैं बनाइये। उसमें जो सामर्थ है, उसकी जो नजरें हैं वो उसकी जो बातचीत में से जो पकड़ के ले आता है, ये आपकी बहुत बड़ी ताकत होती है। और अगर दोनों क्षेत्रों में ताकत है फिर तो आप चीजों को बहुत आसानी से कल्पना कर सकते हैं कि भई ये संभावना है, दस दिन के बाद ये संभावना दिखती है, ये चल रहा है, चलो हम देखते हैं, यहां कुछ लोग आते हैं जाते हैं, कुछ हो रहा है, तुरंत पता चलेगा। और मैं समझता हूं, इसके कारण हमारी व्यवस्थाएं बहुत चुस्त हो जाएगी। जो 50 बार क्राइम करने वालो को सोचने के लिए मजबूर करेगी।
साथियों,
हमें एक और बात भी समझनी है। आज वैश्विक स्तर पर भारत जितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से भारत की चुनौतियां भी बढ़ने वाली हैं। पहले वो उपेक्षा की वृत्ति होती है, फिर उसका जरा मजाक उड़ाने की वृत्ति बनती है, फिर भी आप आगे बढ़ते हैं। तो फिर थोड़ी competition का भाव आ जाता है, प्रतिस्पर्धा आ जाती है। फिर भी आगे बढ़ते हैं, तो दुश्मनी का रुप ले लेती है। विश्व की बहुत सारी ताकतें होंगी जो नहीं चाहेंगी की उनके देश के संदर्भ में भारत कुछ सामर्थ्यवान बने। फलाने विषय में उनकी expertise है उसमें भारत न घुसे। फलानी प्रोडक्ट उनकी बपौती है, अगर उसमें भारत प्रोडक्शन में चला गया तो मार्केट पर भारत कब्जा कर लेगा। भारत बहुत बड़ा बाजार है, भारत खुद बनाने लग जाएगा तो फिर तो हमारा माल कहां जाएगा। कई प्रकार की चुनौती आने वाली है और वो चुनौतियों दुश्मनी का रूप लेते देर नहीं करती। और इसलिए हमें हमारे इन सारे challenges को हमें समझना है और ये सहज है किसी को हमसे कोई हमारा बुरा करना नहीं है। मनुष्य का स्वभाव है आपके यहां भी दो अफसर होंगे तो लगता है कि हां यार आगे चलकर इसका प्रमोशन हो जाएगा, मैं तो रह जाऊंगा। तो उनका फिर 10 साल पहले ही तू–तू शुरू हो जाता है। वैसा हर जगह पर होता है भई। और इसलिए मैं कहता हूं कि हम थोड़ा दूर का सोचकर के हमारे सामर्थ्य को protected environment, proper massaging इसके लिए आवश्यक बारीकियों को जो पहले की Law & Order और आज की चुनौतियों में बहुत बड़ा फर्क आने वाला है। पहले का तो बरकरार रखना ही पड़ेगा, नए के लिए भी हमें अपने आप को तैयार करना पड़ेगा। हमें देश के विरोध में जो ताकतें खड़ी हो रही हैं। जिस प्रकार हर चीज का उपयोग किया जा रहा है। सामान्य नागरिकी सुरक्षा के लिए, Law abiding cities के अधिकारों के लिए ऐसी किसी भी नकारात्मक शक्तियों के खिलाफ कठोर से कठोर बर्ताव ही हमारी जिम्मेदारी है। कोई उदारता नहीं चल सकती है जी। क्योंकि आखिरकार जो Law abiding citizen हैं, जो कानून को मानने वाला व्यक्ति है, वो कहां जाएगा भई। हमारा काम है और ऐसे 99 पर्सेंट सिटिजन वही होते हैं जी, 1 पर्सेंट का ही प्रोब्लम होता है। हमें उन 99 को विश्वास दिलाने के लिए उन 1 पर्सेंट के प्रति जरा भी उदारता बरतने की जरूरत नहीं है।
साथियों,
सोशल मीडिया की शक्ति को हमें काम करके क्या हो रहा है, इतने मात्र से उसको आंकना नहीं चाहिए। एक छोटी सी Fake News, पूरे देश में बड़ा बवाल खड़ा कर सकती है। हमें मालूम है एक आरक्षण की ऐसी अफवाह फैल गई, fake news चल गया, जिसके चलते क्या कुछ नुकसान झेलना पड़ा था देश को। 6-8 घंटे के बाद जब पता चला तो सब शांत हो गए, लेकिन तब तक तो नुकसान बहुत हो चुका था। और इसलिए लोगों को हमें एजुकेट करते रहना पड़ेगा कि कोई भी चीज आती है उसको फारवर्ड करने से पहले 10 बार सोचों भई। कोई भी चीज आती है उसको मानने से पहले जरा वेरिफाई करो और सारे प्लेटफार्म पर वेरिफिकेशन की व्यवस्था होती है। आप एक–दो–दस जगह पर आकर चक्कर लगाओगे तो कुछ न कुछ नया वर्जन मिल जाएगा। ये हमें लोगों को एजुकेट करना होगा। हमें ऐसी Fake World से Driven Society, उसी से डरी हुई सोसायटी, उसी से ड्राईव होने वाली सोसाइयटी इसके बीच में एक बहुत बड़ी शक्ति हमें खड़ी करनी होगी। टेक्नोलॉजिकल शक्ति खड़ी करनी होगी।
साथियों,
सिविल डिफेंस की आवश्यकता और जैसे अभी अमित भाई बता रहे थे भई, कुछ चीज हैं जिस पर हमारा ध्यान अभी हट रहा है। अमित भाई ने सही चीजों को पकड़ा है। आप लोग भी ये जो अनेक दशकों से चली हुई चीजें हैं, इसका बहुत उपयोग है स्कूल कॉलेज में भी इसको हमने सिविल डिफेंस से विषय हो, प्राइमरी हेल्थ वाले विषय हो, जो चीजें होती हैं, पहले भी करते थे हम लोग। Fire fighting की व्यवस्था हम पहले भी करते थे। इसको हमने सहज स्वभाव बनाना चाहिए और मैंने तो कहा है हर नगर पालिका, महानगर पालिका में सप्ताह में एक दिन किसी स्कूल में जाकर के Fire Fighting के क्षेत्र के लोग और पुलिस ने जाकर के ड्रिल करनी चाहिए। तो स्कूल के बच्चे देखेंगे तो उनका भी एजुकेशन हो जाएगा, जो सिस्टम है वो भी उनकी ड्रीम और प्रेक्टिस होती जाएगी। अगले हफ्ते दूसरे स्कूल, फिर एक स्कूल का दस साल में एक बार बारी आएगी बड़े शहर में तो। लेकिन हर पीढ़ी को पता चलेगा वे सिविल डिफेंस के संबंध में, Fire Fighting के संबंध में ये सारी ड्रिल नागरिक को करनी होती है। आपको भी एक बहुत बड़ी ताकत मिलेगी जी। ये सहज रूप से करने वाला काम है।
साथियों,
बीते वर्षों में आतंक के ग्राउंड नेटवर्क को ध्वस्त करने में सभी सरकारों ने बहुत जिम्मेदारी के साथ उसकी गंभीरता को समझकर के कुछ न कुछ करने का प्रयास किया है। कहीं पर शायद सफलता पहले मिली हो, कहीं पर देर से मिली हो, लेकिन हर एक को इसकी गंभीरता को आज समझाना पड़े ऐसा नहीं है। अब हमें इसमें ताकत को जोड़कर के इसको handle करना है जी। इसी प्रकार नक्सलवाद के हर फार्म को हमें पराजित करना पड़ेगा जी। बंदुक वाला भी है और कलम वाला भी नक्सलवाद है। हमें इन सबका काट निकालना पड़ेगा जी। हमारी युवा पीढ़ियों को भ्रमित करने के लिए ऐसी बचकाना बातें कर करके चल पड़ते हैं लोग और इतना नुकसान देश को हो रहा है, और आने वाले दिनों में कोई संभाल नहीं पाएगा जी। और इसलिए हमने जैसे नक्सल प्रभावित जिलों पर फोकस किया है, उसी प्रकार से उन्होंने अब अपना Intellectual दायरा उन जगह पर पहुंचाने का प्रयास किया है, जो आने वाली पीढ़ियों में विकृत मानसिकता पैदा कर सकते हैं। एक दूसरे के प्रति द्वेष पैदा कर सकते हैं। इमोशनल चीजों को out of proportion उछाल कर के समाज के अनेक टुकड़ों में खाई पैदा कर सकते हैं, बिखराव पैदा कर सकते हैं। देश की एकता और अखंडता सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारी प्रेरणा हो, हमें ऐसी किसी चीजों को देश में चलने नहीं देना है जी। लेकिन बुद्धिपूर्वक करना पड़ेगा, समझदारी से करना पड़ेगा। हमारे Fight forces में भी ऐसी expertise तैयार करनी पड़ेगी। किसी राज्य में कोई घटना घटी है, तो हमारे टॉप एक्सपर्ट को वहां स्टडी के लिए भेजना चाहिए, कि विश्वविद्यालय जाओ तीन दिन वहां रहकर आओ, वहां पर हुआ है तो उन्होंने कैसे हैन्डल किया था, मामला कैसे पनपा था, उससे हम सीखते हैं। सीखने के लिए हमें लगातार कोशिश करनी चाहिए। और जो इस प्रकार की दुनिया वाले लोग हैं, उनको अंतरराष्ट्रीय स्तर से भी बहुत मदद मिल जाती है और वो इसमें चतुर होते हैं, और उनका चेहरा मोहरा इतना बड़ा सात्विक दिखता है। इतना बड़ा संविधान और कानून की भाषा में भी बोलते हैं प्रवृत्ति कुछ और करती है। इन सारी चीजों को दूध का दूध और पानी का पानी ये समझने की ताकत हमारे सिक्यूरिटी सामर्थ्य में होनी चाहिए जी। हमें स्थायी शांति के लिए तेजी से आगे बढ़ना बहुत जरूरी है।
साथियों,
जम्मू–कश्मीर हो या नॉर्थ ईस्ट हो आज हम विश्वास gain कर रहे हैं। Destructive ताकतों को भी मुख्य धारा में आने का मन करने लगा है। और जब हम विकास उनको नजर आता है, Infrastructure दिखता है, उनकी अपेक्षाएं पूरी हो रही हैं। तो वे भी अब शस्त्रों को छोड़कर के साथ चलने के लिए तैयार हो रहे हैं। उसी प्रकार से बॉर्डर और कोस्टल एरिया में हमें विकास की ओर देखना होगा। बजट में भी बाइब्रेंट विलेज की बात कही गई है। आपको इस पर सोचना चाहिए। आपके टॉप अफसर उनको बॉर्डर विलेज में नाइट स्टे करके आना चाहिए। आग्रह कीजिए मैं तो मंत्रियों से भी कहुंगा कि कम से कम एक साल में पांच या सात बॉर्डर विलेज में जाकर के दो–तीन घंटे बिताकर आइए। चाहे वो किसी स्टेट का बॉर्डर विलेज हो, चाहे इंटरनेशनल बॉर्डर विलेज हो, आपको बहुत कुछ बारीकियों को पता चलेगा।
साथियों,
हथियार ड्रग ये सारी जो तस्करी चल रही है। ड्रोन उसमें एक नया संकट घुसा हुआ है। हमें हमारे बॉर्डर और कोस्टल उनके लिए संकलन बहुत जरूरी है। हम कहेंगे भई नहीं ये करेगी, कोसटगार्ड ये करेगा इतने से बात बनेगी नहीं यहां, हमें ये संकलन बहुत अच्छे से बढ़ाना पड़ेगा। मुझे विश्वास है कि अगर हम मिलकर एक राष्ट्रीय परिपेक्ष के साथ आगे बढ़ेंगे तो हर चुनौती हमारे सामने बौनी सिद्ध हो जाएगी। और चीजों को हैंडल करने की हमारी ताकत भी बढ़ जाएगी। मुझे विश्वास है कि इस शिविर में जो चर्चा होगी, उसमें से कोई न कोई actionable point निकलेंगे। एक कलेक्टिव रोडमैप बनेगा, हर राज्य को साथ मिलकर के काम करना पड़ेगा। ये तेरा क्षेत्र है, ये मेरा क्षेत्र है, ये तेरा अधिकार है, ये मेरा अधिकार है, अगर हम उसमें उलझे रहेंगे तो उसका सबसे ज्यादा फायदा समाज विरोधी ताकतें जो कानून को मानते नहीं हैं वो इस अव्यवस्था का भरपूर फायदा उठा सकते हैं। इसलिए हमारे बीच समझदारी, संकलन, विश्वास और ये सब बड़ा प्रोफेशनल होना चाहिए जी। और ये जिम्मेदारी हमारे कैडर्स की है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। और मुझे विश्वास है हम साथ मिलकर के करेंगे तो हम जो चाहते हैं वैसा परिणाम प्राप्त कर सकेंगे, और देश के लिए जो अवसर आया है, उस अवसर को पहली नजर में ताकत यूनिफार्म फोर्सेस से आती है जी। विश्वास का एक कारण यूनिफार्म फोर्सेस बन जाता है। हम उसको जितना ज्यादा ताकतवर बनाएंगे, जितना ज्यादा बहुत विजन के साथ काम करने वाला बनाएंगे, जितना ज्यादा नागरिकों के प्रति संवेदनशील बनाएंगे, बहुत लाभ होगा।
कुछ सुझाव मैंने डीजीपी कांफ्रेंस में कहें हैं। मैं सभी मुख्यमंत्री और गृहमंत्री से आग्रह करुंगा कि डीजीपी कांफ्रेंस एक बहुत ही अच्छी Institutional के रूप में विकसित हुई है। खुलकर के चर्चा होती है और उसमें political element जीरो होता है। उसमें से जो बातें निकलती हैं, मैं सभी गृहविभाग के मेरे सचिव जो रहते हैं वो आईएएस कैडर के होते हैं और हमारे जो political field के लोग जो चुनकर के आकर के सरकार चलाते हैं। डीजीपी कांफ्रेस में जो बातें हुई उनसे पूरा briefing लेना चाहिए। उसमें actionalble point को हमें अपने राज्य में तुरंत लागू करना चाहिए। तब जाकर के फायदा होगा। हमें डीजीपी कांफ्रेंस से तो एक मीटिंग हो गई थी हमारे साहब होकर के आ गए हैं ये नहीं है जी। ये एक देश की सिक्यूरिटी को लेकर के काम करने के लिए है। अब जैसे एक सुझाव आया था कि भई हमारी पुलिस के लिए रहने के घर। अब मैंने एक सुझाव दिया था कि खासकर के बड़े शहरों में जो पुलिस थाने हैं या पुलिस स्टेशन हैं। आप जरा सोचिये कि उसमें से कुछ multistorey बन सकता है क्या? नीचे थाना चला रहेगा, लेकिन अगर ऊपर–ऊपर 20 मंजिला मकान बना दिया और र्क्वाटर बना दिये रहने के लिए तो उस इलाके के जितने पुलिस वाले हैं, उनके लिए घर वहीं मिल जाएगा। ट्रांसफर हो जाएगा, तो वो खाली करके चला जाएगा तो जो आएगा उसको वो ही मकान मिल जाएगा। तो पुलिस को आज शहर के बाहर 25 मिलोमीटर दूर घर मिलता है। उसको आने–जाने में दो–दो घंटे लगते हैं। हम जमीन का भी ज्यादा उस राज्य से बात कर सकते हैं, उस कार्पोरेशन से बात कर सकते हैं, जरा उसको highrise के लिए बना सकते हैं, जिससे फायदा होगा और ऊपर भी हम सिक्योरिटी के लिए व्यवस्थाएं आर्गेनाइज कर सकते हैं। हम चीजों को देखने के लिए व्यवस्थाएं आर्गेनाइज कर सकते हैं। यानि stand alone एक छोटा पुलिस थाना है, उसके बजाय आधुनिक पुलिस थाना भी बन जाएगा और उसी के ऊपर 20-25 मंजिला मकान बनकर के रहने के लिए घरों की व्यवस्था हो जाएगी।
और मैं जरूर मानता हूं बड़े शहर में 25-50 थाने तो ऐसे जरूर मिल सकते हैं कि जहां इस प्रकार के डेवलपमेंट की संभावना है। क्योंकि बड़े शहरों में 20 किलोमीटर 25 किलोमीटर बाहर जाना पड़ रहा है पुलिस के र्क्वाटर बनाने के लिए, और उसमें देखा होगा अब जैसे अमित भाई बता रहे थे कि भई बजट जो देते हैं, वो उपयोग नहीं हो रहा है। जितनी मात्रा में खर्च होना चाहिए, नहीं हो रहा है। भारत सरकार में एक ऐसी स्थिति शुरू हुई है कि मुझे बार–बार आग्रह करना पड़ता है कि जिस काम के लिए तय किया है उस बजट को उस काम के लिए उपयोग करो और समय सीमा में करो, पैसे खर्च नहीं कर पा रहे हम लोग। हमारे देश में ये स्थिति हमें नहीं चाहिए, हमें अपनी ताकत बढ़ानी होगी जी, हमारा सामर्थ्य बढ़ाना होगा, निर्णय शक्ति को बढ़ाना पड़ेगा। तब जाकर के इस धन का सही उपयोग समय सीमा में कर पाएंगे और जब समय सीमा में धन का उपयोग होता है तो वेस्टेज तो बचता ही बचता है, हमें लाभ बहुत होता है।
मैं एक और विषय के प्रति आपका ध्यान चाहता हूँ सभी राज्य की पुलिस और भारत सरकार की पुलिस जो हम स्क्रेपिंग पॉलिसी लाए हैं, उसकी स्टडी कीजिए और आपके जितने पुराने व्हीकल हैं। एक बार उनको स्क्रेप करने की दिशा में आप आगे बढ़िये। पुलिस के पास व्हीकल पुराना नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसकी efficiency से जुड़ा हुआ विषय है। उसके कारण दो फायदे होंगे। जो स्क्रेपिंग की बिजनेस में आने वाले लोग हैं, उनको assurance मिल जाएगा कि भई फलाने राज्य में 2 हजार व्हीकल्स स्क्रेपिंग के लिए already उन्होंने identify कर दिए। चलों मैं एक यूनिट लगा देता हूं। रिसाइकल का circular economy का काम हो जाएगा और हम अगर 2 हजार व्हीकल वहां जो नई व्हीकल बनाने वाली कंपनियां भी आ जाएगी कि भई अगर आप 2 हजार व्हीकल हमारे साथ लेते हो तो हम रेट इतना कम करेंगे, हम क्वालिटी में आपको जो चाहिए करके देंगे, इतना बढ़िया पैकेज बन सकता है जी। सभी हमारे पुलिस के पास आधुनिक से आधुनिक व्हीकल आ सकते हैं। हम उस पर सोचें और मैं चाहता हूं कि मिनिस्टर खुद बुलाए ऐसे जो स्क्रेपिंग की दुनिया में अच्छा काम कर सकते हैं उनको। और कहें हम चलो जमीन देते हैं आपको, आप स्क्रेपिंग के लिए recycle के unit लगा दीजिए। हम पहले पुलिस वाले व्हीकल दे देंगे आपको। हम पुलिस के लिए नए व्हीकल लेंगे। ये बहुत जरूरी है जी। भारत सरकार के भिन्न–भिन्न यूनिट भी अपने पुराने सारे कूड़ा–कचरा निकाल देते हैं। और नए तो हमारी environment efficiency सब पर फर्क आएगा। तो ऐसी छोटी–छोटी चीजों पर भी अगर आप कुछ निर्णय करके निकलेंगे और उसको समय सीमा में लागू करेंगे, आप देखिए आप लोगों को तो सुरक्षा देंगे, आप देश के विकास में भी बहुत बड़े भागीदार बन जाएंगे। और मुझे पूरा विश्वास है कि जिस गंभीरता से इस मीटिंग को आप लोगों ने लिया है और विशेषकर के इतनी बड़ी संख्या में मुख्यमंत्रियों का आकर के इस मीटिंग में बैठना सचमुच में तो जब मैंने आपको देखा तो मेरा मन करता है कि मुझे वहां आपके बीच में होना चाहिए था। लेकिन पहले से ही कुछ कार्यक्रमों का इतना प्रेशर रहा है कि मैं नहीं आ पाया। लेकिन जब इतने सारे माननीय मुख्यमंत्री जी आते हों तो एक प्रधानमंत्री का स्वाभाविक मन कर जाता है कि जरा आपके बीच बैठूं, मैं भी आपके साथ चाय पान करते करते काफी बातें करुं, लेकिन मैं नहीं कर पाया इस बार। गृहमंत्री जी आपके साथ बात कर रहे हैं वो जो भी विषय आपसे चर्चा करेंगे, मुझ तक जरूर पहुंचेगा और मेरे हिस्से में जो जिम्मेदारी होगी मैं सभी मुख्यमंत्रियों को, सभी गृहमंत्रियों को विश्वास दिलाता हूं कि आपकी आशा अपेक्षा पर खरा उतरने के लिए भारत सरकार भी उतना ही प्रयास करेगी। मेरा आप सबको बहुत–बहुत धन्यवाद, बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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DS/ST/DK