Text of PM’s address on the launch of development initiatives at Banas Dairy in Diyodar, Gujarat


नमस्ते!

आप सब मजे में हो। अब जरा आपसे माफी मांगकर शुरुआत में मुझे थोड़ी हिन्दी बोलनी पड़ेगी। क्योंकि ये मीडियावाले मित्रों की विनती थी, कि आप हिन्दी में बोले तो अच्छा रहेगा, तो मुझे लगा कि सब तो नहीं, परंतु थोड़ी उनकी बात भी मान ली जाये।

गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री मृदु एवं मक्‍कम श्री भूपेंद्रभाई पटेल, संसद में मेरे वरिष्ठ साथी, गुजरात प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्रीमान सी आर पाटिल, गुजरात सरकार के मंत्री भाई जगदीश पंचाल, इसी धरती की संतान, श्री कीर्तिसिंह वाघेला, श्री गजेंद्र सिंह परमार, सांसदगण श्री परबत भाई, श्री भरत सिंह डाभी, दिनेश भाई अनावाडिया, बनास डेयरी के चेयरमैन ऊर्जावान मेरे साथी भाई शंकर चौधरी, अन्य महानुभाव, बहनों और भाइयों!

माँ नरेश्‍वरी और माँ अंबाजी की इस पावन धरती को मैं शत-शत नमन करता हूं! आप सभी को भी मेरा प्रणाम! शायद जीवन में पहली बार ऐसा अवसर आया होगा कि एक साथ डेढ़-दो लाख माताएं-बहनें आज मुझे यहां आशीर्वाद दे रही हैं, हम सबको आशीर्वाद दे रही हैं। और जब आप ओवरणा (बलैया) ले रहीं थीं तब मैं अपने मन के भाव को रोक नहीं पाता था। आपके आशीर्वाद, मां जगदम्‍बा की भूमि की माताओं के आशीर्वाद, मेरे लिए एक अनमोल आशीर्वाद हैं, अनमोल शक्ति का केंद्र है, अनमोल ऊर्जा का केंद्र है। मैं बनास की सभी माताओं-बहनों को आदरपूर्वक नमन करता हूं।

भाइयों और बहनों,

बीते एक दो घंटे में, मैं यहां अलग-अलग जगहों पर गया हूं। डेयरी सेक्टर से जुड़ी सरकारी योजनाओं की लाभार्थी पशुपालक बहनों से भी मेरी बड़ी विस्‍तार से बातचीत हुई है। ये जो नया संकुल बना है, पोटेटो प्रोसेसिंग प्लांट है, वहां भी विज़िट करने का अवसर मुझे मिला। इस पूरे समय के दौरान जो कुछ भी मैंने देखा, जो चर्चा हुई, जो जानकारियां मुझे दी गईं, उससे मैं बहुत ही प्रभावित हूं और मैं डेयरी के सभी साथियों को और आप सबको हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

भारत में गांव की अर्थव्यवस्था को, माताओं-बहनों के सशक्तिकरण को कैसे बल दिया जा सकता है, Co-operative movement यानि सहकार कैसे आत्मनिर्भर भारत के अभियान को ताकत दे सकता है, ये सब कुछ यहां प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। कुछ महीने पहले मुझे अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बनास काशी संकुल का शिलान्यास करने का अवसर मिला था।

मैं बनास डेयरी का हृदय से आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि काशी के मेरे क्षेत्र में आ करके भी वहां के किसानों की सेवा करने का, पशुपालकों की सेवा करने का, गुजरात की धरती से बनास डेयरी ने संकल्‍प किया और अब मूर्त रूप दिया जा रहा है। मैं इसके लिए काशी के सांसद के नाते मैं आप सबका कर्जदार हूं, मैं आप सबका ऋणी हूं और इसलिए मैं विशेष रूप से बनास डेयरी को हृदय से धन्‍यवाद करता हूं। आज यहां बनास डेयरी संकुल के लोकार्पण कार्यक्रम का हिस्सा बनकर मेरी खुशी अनेक गुना बढ़ गई है।

भाइयों और बहनों,

आज यहां जो भी लोकार्पण और शिलान्यास किए गए हैं, वो हमारी पारंपरिक ताकत से भविष्य के निर्माण के उत्तम उदाहरण हैं। बनास डेयरी संकुल, Cheez और Whey प्लांट, ये सभी तो डेयरी सेक्टर के विस्तार में अहम हैं ही, बनास डेयरी ने ये भी सिद्ध किया है कि स्थानीय किसानों की आय बढ़ाने के लिए दूसरे संसाधनों का भी उपयोग किया जा सकता है।

अब बताइए, आलू और दूध का कोई लेना-देना है क्‍या, कोई मेलजोल है क्‍या? लेकिन बनास डेयरी ने ये रिश्ता भी जोड़ दिया। दूध, छाछ, दही, पनीर, आइसक्रीम के साथ ही आलू-टिक्की, आलू वेज, फ्रेंच फ्राइज़, हैश ब्राउन, बर्गर पेटीज़ जैसे उत्पादों को भी बनास डेयरी ने किसानों का सामर्थ्य बना दिया है। ये भारत के लोकल को ग्लोबल बनाने की दिशा में भी एक अच्छा कदम है। 

साथियों,

बनासकांठा जैसे कम वर्षा वाले जिले की ताकत कांकरेज गाय, मेह्सानी भैंस और यहां के आलू से कैसे किसानों की तकदीर बदल सकती है, ये मॉडल आज बनासकांठा में हम देख सकते हैं। बनास डेयरी तो किसानों को आलू का उत्तम बीज भी उपलब्ध कराती है और आलू के बेहतर दाम भी देती है। इससे आलू किसानों की करोड़ों रुपए कमाई का एक नया क्षेत्र खुल गया है। और ये सिर्फ आलू तक सीमित नहीं है। मैंने लगातार स्वीट रेवोल्यूशन की बात की है, शहद से किसानों को अतिरिक्त आय से जोड़ने का आह्वान किया है, इसको भी बनास डेयरी ने पूरी गंभीरता से अपनाया है। मुझे ये जानकर भी अच्छा लगा कि बनासकांठा की एक और ताकत- यहां की मूंगफली और सरसों को लेकर भी डेयरी ने बड़ी शानदार योजना बनाई है। खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता के लिए जो अभियान सरकार चला रही है, उसको बल देने के लिए आपकी संस्था, तेल संयंत्र भी लगा रही है। ये तिलहन किसानों के लिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन है।

भाइयों और बहनों,

आज यहां एक बायो-CNG प्लांट का लोकार्पण किया गया है और 4 गोबर गैस प्लांट्स का शिलान्यास हुआ है। ऐसे अनेक प्लांट्स बनास डेयरी देशभर में लगाने जा रही है। ये कचरे से कंचन के सरकार के अभियान को मदद करने वाले हैं। गोबरधन के माध्यम से एक साथ कई लक्ष्य हासिल हो रहे हैं। एक तो इससे गांवों में स्वच्छता को बल मिल रहा है, दूसरा, इससे पशुपालकों को गोबर का भी पैसा मिल रहा है, तीसरा, गोबर से बायो-CNG और बिजली जैसे उत्पाद तैयार हो रहे हैं। और चौथा, इस पूरी प्रक्रिया में जो जैविक खाद मिलती है, उससे किसानों को बहुत मदद मिलेगी और हमारी धरती मां को बचाने में भी हम एक कदम आगे बढ़ेंगे। इस प्रकार के प्रयास जब बनास डेयरी के माध्यम से पूरे देश में पहुंचेंगे, तो निश्चित रूप से हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी, गांव मज़बूत होंगे, हमारी बहनें-बेटियां सशक्त होंगी।

साथियों,

गुजरात आज सफलता की जिस ऊंचाई पर है, विकास की जिस ऊंचाई पर है, वो हर गुजराती को गर्व से भर देता है। इसका अनुभव मैंने कल गांधीनगर के विद्या समीक्षा केंद्र में भी किया। गुजरात के बच्चों के भविष्य को, हमारी आने वाली पीढ़ियों को संवारने के लिए, विद्या समीक्षा केंद्र एक बहुत ताकत बन रहा है। हमारी सरकारी प्राथमिक शाला, उसके लिए इतनी बड़ी टेक्‍नोलॉजी का उपयोग, ये दुनिया के लिए एक अजूबा है।

वैसे मैं इस सेक्‍टर से पहले से जुड़ा रहा हूं, लेकिन गुजरात सरकार के निमंत्रण पर कल मैं विशेष तौर पर गांधीनगर में इसे देखने गया था। विद्या समीक्षा केंद्र के काम का जो विस्तार है, टेक्नोलॉजी का जो बेहतरीन इस्तेमाल इसमें किया गया है, वो देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। हमारे लोकप्रिय मुख्‍यमंत्री श्री भूपेंद्र भाई के नेतृत्व में ये विद्या समीक्षा केंद्र, पूरे देश को दिशा दिखाने वाला सेंटर बन गया है।

आप सोचिए, पहले मुझे एक घंटे के लिए ही वहां जाना था, लेकिन मैं वहां सारी चीजों को देखने-समझने में ऐसा डूब गया कि एक घंटे का कार्यक्रम मैं दो-ढाई घंटे तक वहीं चिपका रहा। इतना मुझे उसमें रुचि बढ़ गई। मैंने स्कूल के बच्चों से, शिक्षकों से काफी विस्‍तार से बातें भी कीं। बहुत से बच्चे अलग-अलग स्‍थानों से भी जुड़े थे- दक्षिणी गुजरात, उत्‍तर गुजरात, कच्‍छ सौराष्‍ट्र।

आज ये विद्या समीक्षा केंद्र गुजरात के 54 हजार से ज्यादा स्कूलों से साढ़े चार लाख से ज्यादा शिक्षक और डेढ़ करोड़ से ज्यादा विद्यार्थियों की एक जीती-जागती ऊर्जा का, ताकत का केंद्र बन गया है। इस केंद्र को आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निग, बिग डेटा एनालिसिस, ऐसी आधुनिक सुविधा से सुसज्जित किया गया है। 

विद्या समीक्षा केंद्र हर साल 500 करोड़ डेटा सेट का विश्‍लेषण करता है। इसमें एसेसमेंट टेस्‍ट, सत्र के अंत में परीक्षा, स्‍कूल की मान्‍यता, बच्‍चों और शिक्षकों की उपस्थिति से जुड़े कार्यों को किया जाता है। पूरे प्रदेश के स्कूल में एक तरह का टाइम टेबल, प्रश्‍नपत्र, चेकिंग, इन सबमें भी विद्या समीक्षा केंद्र की बड़ी भूमिका है। इस सेंटर की वजह से स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति 26 प्रतिशत तक बढ़ गई है। 

शिक्षा के क्षेत्र में ये आधुनिक केंद्र, पूरे देश में बड़े परिवर्तन ला सकता है। मैं भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों और अधिकारियों से भी कहूंगा कि विद्या समीक्षा केंद्र का अवश्‍य अध्ययन करें। विभिन्न राज्यों के संबंधित मंत्रालय भी गांधीनगर आएं, इसकी व्यवस्था का अध्ययन करें। विद्या समीक्षा केंद्र जैसी आधुनिक व्यवस्था का लाभ देश के जितने ज्यादा बच्चों को मिलेगा, उतना ही भारत का भविष्य उज्ज्वल बनेगा।

अब मुझे लगता है मुझे आपके साथ अपने बनास के तौर पर बात करनी चाहिए, सबसे पहले तो जब बनास डेरी के साथ जुड़कर बनास की धरती पर आना हो तो आदरपूर्वक मेरा शिश झुकता है, श्रीमान गलबा काका के लिए। और 60 वर्ष पहले किसान के पुत्र गलबा काका ने जो सपना देखा, वो आज विराट वटवृक्ष बन गया, और बनासकांठा के घर-घर उन्होंने एक नई आर्थिक शक्ति पैदा कर दी है, उसके लिए सबसे पहले गलबा काका को आदरपूर्वक मैं नमन करता हूँ। दूसरा नमन मेरी बनासकांठा की माता-बहनों को, पशुपालन का काम मैंने देखा है, मेरी बनासकांठा की माताओं-बहनों, घर में जैसे संतान को संभालती है, उससे भी ज्यादा प्रेम से उनके पशुओं को संभालती है। पशु को चारा न मिला हो, पानी न मिला हो तो मेरी बनासकांठा की माताएँ-बहनें खुद पानी पीने में झिझकती है। कभी विवाह के लिए, त्यौहार के लिए घर छोड़कर बाहर जाना हो, तब बनास की मेरी माताएँ-बहनें सगे-संबंधी का विवाह छोड़ दें,  परंतु पशुओं को अकेले नहीं छोड़ती है। यह त्याग और तपस्या है, इसलिए यह माताओं और बहनों के तपस्या का परिणाम है कि आज बनास फला-फूला है। इसलिए मेरा दूसरा नमन मेरी यह बनासकांठा की माताओं-बहनों को है, मैं उनको आदरपूर्वक प्रणाम करता हूँ। कोरोना के समय में भी बनास डेरी ने महत्व का काम किया, गलबा काका के नाम पर मेडिकल कॉलेज का निर्माण किया और अब यह मेरी बनास डेरी आलू की चिंता करे, पशुओ की चिंता करे, दूध की चिंता करे, गोबर की चिंता करे, शहद की चिंता करे, ऊर्जा केन्द्र चलाए, और अब बच्चों के शिक्षण की भी चिंता करती है। एक प्रकार से बनास डेरी बनासकांठा की को-ऑपरेटीव मूवमेन्ट समग्र बनासकांठा के उज्ज्वल भविष्य का केन्द्र बन गया है। उसके लिए भी एक दीर्घदृष्टि व्यवस्था होनी चाहिए, और बीते सात-आठ सालों में जिस तरह डेरी का विस्तार हुआ है, और मेरी तो इसमें श्रद्धा होने के कारण इसमें मेरे से जो बनता है, जब मुख्यमंत्री था, तब भी हमेशा हाजिर रहता था, और अब आपने मुझे दिल्ली भेजा है, तब भी मैंने आपको नहीं छोड़ा। आपके साथ रहकर आपके सुख-दुख में साथ रहा। आज बनास डेरी यूपी, हरियाणा, राजस्थान और ओडीशा में सोमनाथ की धरती से जगन्नाथ की धरती तक, आंध्रप्रदेश, झारखंड उनके पशुपालकों के लिए ज्यादा से ज्यादा लाभ देने का काम कर रही है। आज विश्व के सबसे बड़े दुध उत्पादक देशों में अपना भारत जहां करोड़ों किसानों की आजीविका जब दूध से चलती हो, तब एक साल में लगभग कितनी बार आकंड़े देखकर कुछ लोग, बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी इसकी तरफ ध्यान नहीं देते। हमारे देश में साल में साढ़े आठ लाख करोड़ दूध का उत्पादन होता है। गांवो में डिसेन्ट्रलाईज्ड इकोनोमिक सिस्टम उसका उदाहरण है। उसके सामने गेहुं और चावल का उत्पादन भी साढ़े आठ लाख करोड़ नहीं है। उससे भी ज्यादा दूध का उत्पादन है। और डेरी सेक्टर का सबसे ज्यादा लाभ छोटे किसानों को मिलता है, दो बीघा, तीन बीघा, पांच बीघा जमीन हो, बारिश का नामो-निशान ना हो, पानी की कमी हो, तब हमारे किसान भाइयों के लिए जीवन मुश्किल बन जाए। तब पशुपालन करके परिवार का पेट भरता है, इस डेरी ने छोटे किसानों की बड़ी चिंता की है। और छोटे किसानों को बड़ी चिंता, यह संस्कार लेकर मैं दिल्ली गया, दिल्ली में भी मैंने सारे देश के छोटे किसानों की, छोटे-छोटे किसानों की बड़ी-बड़ी जवाबदारी लेने का काम किया। और आज साल में तीन बार दो-दो हजार रुपया किसानों के खातें में सीधा जमा करता हूँ। पहले के प्रधानमंत्री कहते थे कि दिल्ली से रुपया निकले तो 15 पैसे पहुंचे। ये प्रधानमंत्री यह कहता है, कि दिल्ली से रुपया निकले 100 के 100 पैसा जिसके घर पहुंचना चाहिए, उसके घर पहुंचता है। और किसानों के खाते में जमा होता है। ऐसे अनेक काम आज जब भारत सरकार, गुजरात सरकार, गुजरात की को-ऑपरेटीव मूवमेन्ट ये सब साथ मिलकर कर रहे हैं, तब मैं ये सब मूवमेन्ट को हृदयपूर्वक अभिनंदन देता हूँ। उनका जय जयकार हो, अभी भूपेन्द्र भाई ने बहुत ही भावना से एक बात कही, ओर्गेनिक खेती की, बनासकांठा एक बात जो समझ जाए, तो बनासकांठा कभी-कभी भी उस बात को नहीं छोड़ता है, यह मेरा अनुभव है। प्रारंभ में मेहनत लगती है, मुझे याद है बिजली छोड़ो, बिजली छोड़ो कह-कहकर मैं थक गया। और बनास के लोगों को लगता था कि ये मोदी को कुछ पता नहीं चलता, और हमें कहते hain बिजली में से बाहर आओ, और मेरा विरोध करते थे, परंतु जब बनास के किसानों को समझ आया वो मुझसे भी दस कदम आगे गये, और पानी बचाने का बड़ा अभियान चलाया, टपक सिंचाई को अपनाया, और आज बनास खेती के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का काम, आज मेरा यह बनासकांठा कर रहा है। मुझे पूरा विश्वास है, कि मां नर्मदा जब बनास को मिलने आई है, तब इस पानी को ईश्वर का प्रसाद मानकर, पानी को पारस मानकर और इस बार आजादी का अमृत महोत्सव है, आजादी के 75 वर्ष हुए है, तब मेरी बनास जिले से विनती है कि 75 ऐसे बड़े तालाब बनायें कि बनास की इस सूखी जमीन धरा पर जहां कुछ भी पैदा न होता हो और जब एक या दो बारिश का पानी बरसे तो पानी धड़ा-धड़ बहकर वहां चला जाए, ऐसी व्यवस्था करे कि पानी से यह तालाब भरने की शुरूआत अगर होगी तो मुझे यकीन है, यह धरती भी अमृतमयी बन जायेगी। इसलिए यह मेरी अपेक्षा है कि जून महीने से पहले, बारिश आये उससे पहले, आगामी दो-तीन महीने में जोरदार अभियान चलायें। और 2023 में 15 अगस्त को, आजादी के अमृत महोत्सव के समय में, इस एक साल में मात्र बनास जिले में कम से कम 75 बड़े तालाब बन जाएँ, और पानी से लबालब भरें रहें। तब आज जो छोटी-मोटी तकलीफ़ें होती हैं, उससे हम बाहर आ जायेंगे और मैं आपका अनन्य साथी हूँ। जैसे खेत में एक साथी अपना काम करता है, वैसे मैं भी आपका साथी हूँ। और इसलिए आपके साथी के रूप में आपके साथ खड़े रहकर काम करना चाहता हूँ। अब तो अपने नडाबेट में टूरिज़म का केन्द्र बन गया, भारत के बार्डर जिले का विकास कैसे हो, भारत के बार्डर को कैसे जीवंत बनायें, उसका उदाहरण गुजरात ने दिया है। कच्छ की सीमा पर रणोत्सव पूरे कच्छ के सरहद को, वहां के गांवो को आर्थिक रूप से जीवंत बना दिया है। अब ऩडाबेट जिसने सीमादर्शन का कार्यक्रम प्रारंभ किया है, उसके कारण मेरी यह बनास और पाटण जिले के सरहदों के किनारों के गांवों के लिए भी, इस टूरिज़म के कारण गांवों में रौनक आयेगी। दूर से दूर गांवों में भी रोजी-रोटी के अवसर मिलने लगेंगे, विकास के लिए कितने रास्ते हो सकते हैं, प्रकृति की गोद में रहकर कठिन से कठिन स्थिति में कैसे परिवर्तन ला सकते हैं, उसका यह उत्तम उदाहरण अपने सामने है। तब मैं बनास के गुजरात के नागरिकों और एक रूप से देश के नागरिकों को यह अनमोल रत्न मैं उनके चरणों में दे रहा हूँ। और इस अवसर के लिए बनास डेरी ने मुझे पसंद किया उसके लिए मैं बनास डेरी का भी आभारी हूँ। मेरे साथ दोनों हाथ ऊपर कर जोर से बोलेंगे, भारत माता की, आवाज जोरदार होनी चाहिए आपकी। 

भारत माता की-जय, भारत माता की-जय!

खूब-खूब धन्‍यवाद !

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DS/ST/SD/NS



Source PIB